सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने सियासत में ऐसा सुर साधा, जिसे जमाने ने बड़े गौर से सुना। अब वह नहीं हैं, लेकिन उनकी सियासी सुगंध मौजूद है। वह प्रदेश ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में केंद्रीय भूमिका में रहे। मुख्यमंत्री हो या रक्षा मंत्री उनके द्वारा उठाए गए कदम इतिहास में मौजूद रहेंगे। उन्होंने सेना में आधुनिकीकरण पर जोर दिया तो पीसीएस की परीक्षा में हिंदी की अनिवार्यता खत्म कर भाषा का सम्मान बढाया।
प्रदेश की सियासत में मुलायम सिंह ने कई प्रयोग किए। इन प्रयोगों की वजह से उन्हें कभी मुल्ला मुलायम तो कहीं फौलादी सिपाही का तमगा मिला, लेकिन वे हिचके नहीं बल्कि अपनी राह पर निरंतर आगे बढ़ते रहे। व्यक्ति के रूप में ऊंचे पद की ख्वाहिश के बिना वह सांप्रदायिकता का विरोध करते रहे। उत्तर प्रदेश में भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए मुलायम सिंह लंबे समय तक व्यापक गठजोड़ करते रहे। वास्तव में मुलायम सिंह ने प्रदेश की सियासत में धाक जमाने के बाद केंद्रीय राजनीति में भागीदारी बढ़ाई। 29 मई 1987 में चौधरी चरण सिंह की मृत्यू के बाद एक नए राजनीतिक गठजोड़ की आधारशिला रखी गई। इसे क्रांतिकारी मोर्चा नाम दिया गया। इस मोर्चे के जरिए लोकदल ने 1987 में हरियाणा में विधानसभा चुनाव जीत लिया। यहीं से मुलायम सिंह ने नारा दिया कि हरियाणा जीत लिया अब यूपी की बारी। 14 सितंबर 1987 को लखनऊ में क्रांतिकारी मोर्चे की बैठक हुआ और मुलायम सिंह यादव क्रांति रथ पर बैठकर यूपी के विभिन्न जिलों में निकल गए। मुलायम सिंह ने कहा कि वह जीवित रहें या न रहें, क्रांतिरथ हमेशा एक विचारधारा के रूप में चलता रहना चाहिए। क्रांतिरथ का पहला चरण पूरा होने के बाद 15 अक्तूबर 1987 को लखनऊ में रैली हुई। रैली में चंद्रशेखर, हेमवती नंदन, हरिकिशन सिंह सुरजीत जैसे नेता जुटे। यहीं से मुलायम सिंह ने केंद्रीय राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत की। फिर तो उनके कदम बढ़ते चले गए।
रक्षामंत्री के रूप में सेना को संवारा
संयुक्त मोर्चा की सरकार में रक्षामंत्री बनने पर मुलायम सिंह ने सैनिकों के कल्याण और सेना के आधुनिकीकरण पर जोर दिया। वर्ष 1996-97 के बजट में रक्षा मद के व्यय में 12 सौ करोड़ रुपये की वृद्धि की गई। वर्ष 97-98 में यह बजट 35620 करोड़ रुपये हो गया। लंबे समय से पड़े एसयू-30 विमान के सौदे को मंजूरी दी गई। इसके लिए लोकसभा में तत्कालीन विपक्ष केनेता अटल बिहारी वाजपेयी ने मुलायम सिंह को बधाई दी। उन्होंने रक्षा मंत्री के रूप में रूस के साथ एक नए समझौते पर हस्ताक्षर किया, जिसमें दोनों देश एक-दूसरे केयहां रक्षा विशेषज्ञ भेज सकते हैं और सूचनाओं का आदान- प्रदान कर सकते हैं। उन्होंने आईएनएस घड़ियाल, आईएनएस प्रहार को फरवरी 1997 में कोलकता में नौ सेना में शामिल किया। इसी वक्त मिसाइल आकाश और टैंक विरोधी मिसाइल नाग का परीक्षण हुआ। सेना में कमीशनिंग प्रक्रिया को नए नजरिए से देखा। सैनिक कल्याण को ध्यान में रखते हुए पूर्व सैनिकों और उनकी विधवाओं को मिलनेवाली आर्थिक सहायता राशि को 250 रुपये प्रतिमाह से बढ़ाकर 500 रुपये प्रतिमाह और बेटियों की शादी पर मिलने वाली राशि को चार हजार से बढ़ाकर 10 हजार किया। वरिष्ठ पत्रकार देशबंधु वशिष्ट ने अपनी पुस्तक ‘मुलायम सिंह यादव और समाजवाद’ में रक्षामंत्री के रूप में उनके कार्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला है।
पीसीएस में हिंदी की अनिवार्यता खत्म की
मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 1990 में उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं में अंग्रेजी के प्रश्न पत्र की अनिवार्यता समाप्त की। साथ ही हिंदी के प्रश्न पत्र में प्रश्नों के अंग्रेजी अनुवाद की शर्त को समाप्त किया। उनका यह अभियान निरंतर आगे बढ़ता रहा। जब वह रक्षामंत्री बने तो तीनों रक्षा सेनाओं के अध्यक्ष से कहा कि आप भारतीय हैं। हिंदी में कार्य कीजिए। रक्षा मंत्रालय ने ऐसा पहली बार हुआ। क्योंकि यहां हिंदी में कामकाज की कोई परंपरा नहीं थी। मुलायम सिंह यादव मानते थे कि क्षेत्रवाद और वोट की राजनीति की वजह से हिंदी को सम्मान नहीं मिला। डा. राम मनोहर लोहिया की तरह मुलायम सिंह ने हिंदी की वकालत की। सत्ता में आने के बाद मुलायम सिंह ने आदेश दिया कि सभी प्रशासनिक कामकाज हिंदी में दिया जाए। इस पर जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई। दूसरी तरफ राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश आदि राज्यों ने अपने यहां प्रशासनिक कामकाज हिंदी में शुरू करने का फैसला लिया। उन्होंने कहा कि यदि तमिलनाडू या आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री उन्हें अंग्रेजी में पत्र लिखेंगे तो वह तमिल और तेलगू में जवाब भेजेंगे। पूर्व सांसद उदय प्रताप कहते हैं कि मुलायम सिंह ने निरंतर हिंदी भाषा की वकालत की। क्योंकि वह डा. लोहिया और जय प्रकाश नारायण के साथ हिंदी आंदोलन के दौरान कई बार जेल भी गए थे।
पीएम बनते- बनते रह गए
11वीं लोकसभा चुनाव के बाद 1996 में संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी। मुलायम देश के रक्षामंत्री बने। बाद में मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने की भी बात चली थी। प्रधानमंत्री पद की दौड़ में वे सबसे आगे खड़े थे। एक रिपोर्ट के मुताबिक उस वक्त मुलायम सिंह को 110 से ज्यादा सांसदों ने खुला समर्थन दिया था। लेकिन कुछ लोगों के विरोध की वजह से उनके नाम पर मुहर नहीं लग सकी। इसके बाद चुनाव हुए तो मुलायम सिंह संभल और कन्नौज से जीते। बाद में कन्नौज सीट पर अपने बेटे अखिलेश यादव को सांसद बनाया।