हिमालय दिवस पर शुक्रवार को जड़ी बूटी शोध एवं विकास संस्थान मंडल में एक गोष्ठी आयोजित की गई। गोष्ठी में पर्यावरण विद पद्मश्री चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि प्रकृति कभी भी किसी का बुरा नहीं करती है लेकिन जब उसके साथ छेड़छाड़ की जाती है तो वह अपना रौद्र रूप दिखा देती है।
पद्मश्री भट्ट ने कहा कि वैज्ञानिक शोध के अनुसार हिमालय एक नयी पर्वत श्रृंखला है जो निरंतर बढ़ते हुए अपनी स्थिरता को खोज रहा है। उन्होंने कहा कि जो भी चीज युवा होती है वह गुस्सैल भी होती है, इसलिए हिमालय भी गुस्सैल है और उसके साथ की जाने वाली छेड़खानी मानव जीवन पर भारी पड़ती है। जब-जब हिमालय के साथ छेड़छाड़ हुई है तो उसका खामियाजा मानव जाति को भुगतना पड़ा है।
उन्होंने कहा कि विकास के लिए सभी चीजें आवश्यक हैं लेकिन विकास के नाम पर जो किया जा रहा है वह घातक है। उन्होंने कहा कि ऑल वेदर रोड का मलबा सीधे नदियों में प्रवाहित किया जा रहा है जिसका परिणाम यह है कि नदियों का जल स्तर धीरे-धीरे बढ़ता चला जा रहा है। इसका खामियाजा आज नदियों के किनारे रहने वाले मैदानी क्षेत्र के लोगों को बाढ़ की विभीषिका के रूप में भुगतना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि हिमालय बचाओ अभियान अथवा हिमालय दिवस तो आठ-दस साल से मनाया जा रहा है। यहां के लोग तो सदियों से हिमालय को बचाने की मुहिम में लगे हैं। यहां के लोग प्रकृति के इतने पास हैं कि वे इसमें भी किसी न किसी देवी-देवता का वास मानते हुए उनकी पूजा करते हैं। हमारे पूर्वज तो जंगलों से घास चारापति, औषधी, लकड़ी काटने से पहले उसकी पूजा करते थे। यहां तक कि जंगलों में जोर की आवाज करना भी वर्जित मानते थे। आज उसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो हिमालयी क्षेत्र में ऊंची आवाज अथवा गर्जना करने से ग्लेशियरों के टूटने का खतरा माना जाता है अथवा जंगली जानवरों के लिए घातक समझा जाता है। जो बातें हमारे पूर्वज उस वक्त बता चुके थे आज वही सार्थक सिद्ध हो रही हैं।
उन्होंने कहा कि हिमालय बचाने और हिमालय दिवस मनाने की बातें तो सभी सरकारें कर रही हैं लेकिन राजनैतिक इच्छा शक्ति के अभाव में कोई ठोस नीति न बनने के कारण हिमालय को बचाने के लिए कोई सशक्त कदम नहीं उठाया जा रहा है। उन्होंने गोष्ठी में पहुंचे ग्रामीणों से अपील की कि जिस प्रकार से उन्होंने आज तक अपने आसपास के वातावरण को स्वच्छ और पर्यावरण का संरक्षण किया है उसे निरंतर बनाए रखें, ताकि हिमालय को बचाया जा सके।