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मोती महल के दीवान-ए-आम में अब गायों के खूंटे, किले में पाथी जा रही गोबर की चिपरी

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Prayagraj News :  दारागंज स्थित मोती महल प्रशासनिक दुर्दशा का शिकार हो गया है। देखरेख के अभाव में पूरा भवन जर्जर हो गया है।

गंगा किनारे करीब 40 हजार वर्ग फीट क्षेत्रफल में बने किले में नक्काशीदार पायों वाला आलीशान राज दरबार, दीवान-ए-खास, दीवान-ए-आम और घोड़े बांधने के लिए अस्तबल है तो, लेकिन खंडहर में तब्दील होता हुआ। चारों तरफ  कूड़े के ढेर और बिखरा कचरा किले की सूरत बिगाड़ रहा है।

संगम नगरी में राजा टोडरमल के ऐेतिहासिक मोती महल के प्राचीरों की ईंटें दरक रही हैं। राजमहल के अस्तबल में जहां कभी हाथी-घोड़े शान हुआ करते थे, अब वहां गायें बांधी जा रही हैं। राज दरबार से लगे हिस्से में गोबर की चिपरी पाथी जा रही है। विडंबना देखिए कि महाकुंभ-2025 की तैयारियां शुरू हो गई हैं और इस किले को कुंभ की योजना में भी शामिल नहीं किया जा सका हैै।

गंगा किनारे करीब 40 हजार वर्ग फीट क्षेत्रफल में बने किले में नक्काशीदार पायों वाला आलीशान राज दरबार, दीवान-ए-खास, दीवान-ए-आम और घोड़े बांधने के लिए अस्तबल है तो, लेकिन खंडहर में तब्दील होता हुआ। चारों तरफ  कूड़े के ढेर और बिखरा कचरा किले की सूरत बिगाड़ रहा है। उत्तर-पश्चिम कोने पर द्वितीय तल में दीवानखाना और पश्चिमी कोने पर राजा टोडरमल का कक्ष अभी भी देखा जा सकता है।

किले के ही एक हिस्से में रहने वाले टोडरमल के वंशज सुधांशु अग्रवाल बताते हैं कि मोती महल में टोडरमल का सचिवालय चलता था। प्रथम खंड पर शस्त्रागार और मंत्री, सिपहसालार रहते थे। इन तीनों खंडों को तोप से उड़ाकर ब्रिटिश सेना ने लूट लिया था। उसके बाद से नीचे के तीन खंड बंद हैं। हमारे पास संसाधन नहीं हैं, जो नीचे के तलों को खुलवा सकें। नीचे के हिस्से में कई अनूठी निशानियां दबी पड़ी हैं। मदद के लिए कई बार पर्यटन विभाग और जिला प्रशासन से गुहार लगाई, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया।

 

Prayagraj News : दारागंज स्थित मोती महल प्रशासनिक दुर्दशा का शिकार हो गया है।
टोडरमल के वंशज चाहते हैं, कि इसका जीर्णोद्धार और संरक्षण उन्हीं की देखरेख में हो। संगम तट पर अकबर के किले के निर्माण के दौरान कैंप करने के लिए टोडरमल ने वर्ष 1585 में मोती महल की नींव डाली थी। 1590 में निर्माण पूरा हुआ। वर्तमान में टोडरमल की 17वीं पीढ़ी के वंशजों का स्वामित्व है। किले के छह में से पांच फाटक टूट चुके हैं। 12 जून 1857 को ब्रिटिश हुकूमत के अंतिम गवर्नर जनरल कर्नल नील ने यहां हमला किया था। तब तोप के गोले दागकर पूरी गारद तो मारी ही गई, पांचों फाटक तोड़ डाले गए थे। इसके बाद फाटक नहीं लगे। अंग्रेजी सेना के हमले में नौ हजार से अधिक लोग मारे थे।

Prayagraj News :  दारागंज स्थित मोती महल प्रशासनिक दुर्दशा का शिकार हो गया है। देखरेख के अभाव में पूरा भवन जर्जर हो गया है। इसकी दीवारें तक गायब हो गई है।
राजा टोडरमल के बारे में 

15वीं शताब्दी के बाद टोडरमल झूंसी स्थित प्रतिष्ठानपुरी के राजा थे। पहली बार शेरशाह सूरी ने टोडरमल को अपना राजस्व मंत्री नियुक्त किया था और खजाना भरने की जिम्मेदारी दी थी। 1560 में बैरम खां से परेशान होकर अकबर ने इलाहाबाद में जब पड़ाव डाला था तब वह टोडरमल से प्रभावित हुआ और अपने साथ आगरा ले गया। वहां उसने टोडरमल को राजस्व मंत्री और आंतरिक सुरक्षा मंत्री की जिम्मेदारी दी थी।

बार-बार हुए हमले और छीनाझपटी के बाद यह किला हमें वापस मिला है। अब हम इसे गंवाना नहीं चाहते। सरकार अगर संरक्षण के लिए कदम उठाती है तो स्वागत करेंगे। लेकिन, इसे हस्तांतरित नहीं कर सकते। – सुधांशु अग्रवाल, टोडरमल के वंशज।

अभी तक मोती महल के संरक्षण को लेकर कोई प्रस्ताव या पत्र नहीं आया है। इस ऐतिहासिक महत्व के महल का निरीक्षण किया जाएगा। इसके बाद जो जरूरी होगा, कदम उठाया जाएगा। – संजय खत्री, जिलाधिकारी।

मोती महल शहर की ऐतिहासिक धरोहर में शुमार है। इसका निरीक्षण कर रिपोर्ट तैयार की जाएगी। ताकि, इसके संरक्षण का खाका खींचा जा सके। -कर्मवीर तिवारी, संरक्षण सहायक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण-प्रयागराज।

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