भक्तों के प्रेम में अत्यधिक स्नान से एक पखवाड़े तक अस्वस्थ रहने के बाद नाथों के नाथ भगवान जगन्नाथ स्वस्थ हो गये। बुधवार को प्रभु का विधिवत श्वेत वस्त्रों में श्रृंगार और मंगला आरती के बाद अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर का पट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया। दरबार में भगवान जगन्नाथ, भइया बलभद्र और बहन सुभद्रा के विग्रह का दर्शन कर श्रद्धालु आह्लादित होते रहे। दरबार में दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालु सुबह से ही पहुंचते रहे।
मंदिर के ट्रस्टी आलोक शापुरी के अनुसार सुबह मंगला आरती, दुग्ध और महाप्रसाद नैवेद्य अर्पण के बाद शाम को भगवान की कपूर आरती और आचमन होगा। गुरुवार को प्रभु की डोली यात्रा मंदिर से निकलेगी। शाम को प्रभु और उनके भाई बलभद्र, बहन सुभद्रा का डोली शृंगार के बाद परंपरागत यात्रा मंदिर से पं. बेनीराम बाग रथयात्रा पहुंचेगी। प्रभु मनफेर के लिए ससुराल में विश्राम करेंगे। अगले दिन शुक्रवार से काशी में लक्खा मेले में शुमार रथयात्रा मेले का शुभारंभ हो जाएगा। मेला स्थल पर तैयारियां पूरी हो चुकी हैं और शहीद उद्यान में रखा प्रभु का रथ भी तैयार है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा (14 जून) को अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर में श्रद्धालुओं ने भगवान जगन्नाथ के दर्शन-पूजन के लिए जलाभिषेक किया था। देर शाम तक अत्यधिक स्नान के कारण प्रतीक रूप से प्रभु बीमार पड़कर एकांतवास में चले गए। 15 दिनों बाद वह स्वस्थ हो गये। बीमारी के बाद स्वस्थ होकर ससुराल पहुंचे भगवान जगन्नाथ की पहले दिन खूब खातिरदारी होती है। बीमारी से उठने की वजह से सुबह के नाश्ते के भोग में छौंका हुआ मूंग-चना, खांड़सारी, दही परोसा जाता है। लंगड़ा आम और मघई पान के बीड़ा से भगवान का स्वागत किया जाएगा।
काशी में रथयात्रा मेले का इतिहास 320 साल से अधिक पुराना है। माना जाता है कि जगन्नाथपुरी पुरी मंदिर से आए पुजारी ने ही अस्सी घाट पर जगन्नाथ मंदिर की स्थापना की थी। वर्ष 1690 में पुरी के जगन्नाथ मंदिर के पुजारी बालक दास ब्रह्मचारी वहां के तत्कालीन राजा के व्यवहार से नाराज होकर काशी आ गए थे। इसके बाद बालक दास ने महाराष्ट्र की एक रियासत के राजा की मदद से भगवान जगन्नाथ के मंदिर का निर्माण कराया था। वर्ष 1700 से उन्होंने काशी में रथयात्रा मेला शुरू कराया।