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बिहार की 30 सीटों पर चुनाव लड़ेगी भाजपा, एनडीए के साथी दलों को मिलेंगी इतनी सीटें

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भाजपा ने राज्य में 35 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। पार्टी के रणनीतिकारों का दावा है कि आंतरिक सर्वे में किशनगंज और नालंदा को छोड़ कर शेष 38 सीटों पर राजग के लिए सकारात्मक फीडबैक मिल रहा है।

मिशन 2024 की तैयारियों में जुटी भाजपा ने बिहार में सीट बंटवारे का फार्मूला तय कर लिया है। इस फार्मूले के मुताबिक भाजपा राज्य की 40 में से 30 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। पार्टी ने लोजपा के दोनों धड़ों के लिए पहले की तरह छह सीटें छोड़ी हैं। इसके अलावा उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल को दो और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) को एक सीट देने का मन बनाया है। शेष एक सीट विशेष रणनीति के तहत खाली रखी गई है।

भाजपा सूत्रों के मुताबिक लोजपा के दोनों धड़ों में जारी विवाद के बीच पार्टी नेतृत्व ने चिराग पासवान और पशुपति पारस के लिए बीते लोकसभा चुनाव की तरह ही छह सीटें देने का फैसला किया है। यानी दोनों धड़ों के हिस्से तीन-तीन सीटें आएंगी। हालांकि पार्टी नेतृत्व ने हाजीपुर सीट पर चिराग को पहली प्राथमिकता देने का संकेत दिया है। इस सीट से फिलहाल पशुपति सांसद हैं।

 

35 सीटें जीतने का लक्ष्य
भाजपा ने राज्य में 35 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। पार्टी के रणनीतिकारों का दावा है कि आंतरिक सर्वे में किशनगंज और नालंदा को छोड़ कर शेष 38 सीटों पर राजग के लिए सकारात्मक फीडबैक मिल रहा है।

हम पहली बार मैदान में
कुशवाहा साल 2014 में भाजपा के साथ थे। तब उनकी पार्टी आरएलएसपी को तीन सीटें मिली थी। तीनों सीटों पर जीत के बाद कुशवाहा को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था। इस बार भाजपा ने उन्हें दो सीटें ही देने का फैसला किया है। हाल ही में राजग में शामिल हुए जीतन राम मांझी की पार्टी हम को भाजपा एक सीट देगी। संभावना है कि उनकी पार्टी भाजपा के चुनाव चिन्ह पर मैदान में उतरे।

जदयू के आधा दर्जन सांसद संपर्क में
जदयू के आधा दर्जन सांसद भाजपा के संपर्क में हैं। इनमें ऐसे सांसद शामिल हैं, जिन्हें राजग-जदयू गठबंधन से अपनी सीटें गंवाने का खतरा है। गौरतलब है कि बीते चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन में जदयू ने किशनगंज को छोड़ कर कोसी-सीमांचल की सभी सीटें जीती थी। यहां जदयू का मुकाबला राजग और कांग्रेस से था। अब नए गठबंधन में राजद और कांग्रेस की इसी क्षेत्र की सीटों पर नजरें हैं। इसके अलावा पार्टी के कई सांसद ऐसे हैं जो नए गठबंधन को लेकर सहज नहीं है। ये सांसद संभवत: अक्तूबर में पाला बदलेंगे, जिससे उन्हें लोकसभा उपचुनाव का सामना नहीं करना पड़े।

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