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मानसूनी बारिश को प्रभावित कर रहा अल-नीनो, फसलों पर भी असर; पारिस्थितिक तंत्र पर पड़ेगा दूरगामी असर

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विशेषज्ञों के अनुसार, बदलती जलवायु के अनुसार हमें फसल पैटर्न में बदलाव करके विशिष्ट फसलों पर निर्भरता कम करनी होगी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद सक्रिय रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीली और बीमारियों का सामना करने वाली फसल किस्मों का विकास कर रही है।

अल-नीनो दुनिया भर में मौसम की घटनाओं को गहराई से प्रभावित करता है, जो खाद्य उत्पादन, पानी की उपलब्धता और पारिस्थितिक तंत्र पर दूरगामी विपरीत असर डालते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार भारत के लिए कृषि उत्पादन पर पड़ने वाले इसके प्रभाव गंभीर चिंताओं में से एक है।अल-नीनो की घटनाएं उपमहाद्वीप में बढ़ते तापमान, अत्यधिक गर्मी और अधिक अनियमित वर्षा पैटर्न को प्रेरित करने से जुड़ी हुई हैं। ऐतिहासिक रूप से अल-नीनो की कम से कम आधी घटनाएं गर्मियों के मानसून के मौसम के दौरान सूखे से सीधे तौर पर जुड़ी हैं। दक्षिणी भारत के चेन्नई में 2015 में एक असाधारण वर्षा की घटना हुई। उस समय इस क्षेत्र में एक सदी से भी अधिक समय में सबसे भारी बारिश एक दिन में देखी गई। इस घटना के लिए 2014 और 2016 के बीच चरम अल-नीनो को जिम्मेदार ठहराया गया है। मूसलाधार बारिश के परिणामस्वरूप 30 लाख से अधिक लोग आवश्यक सेवाओं से वंचित हो गए और भारतीय अर्थव्यवस्था को करीब 3 अरब अमेरिकी डालर का नुकसान उठाना पड़ा।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण मजबूत हो रहे अल-नीनो
अल-नीनो सबसे अधिक भारत के मानसून को प्रभावित करेगा। क्योंकि महासागर ग्लोबल वार्मिंग के कारण लगभग 93 प्रतिशत अतिरिक्त गर्मी को अवशोषित कर रहे हैं, इसलिए अल-नीनो मजबूत हो रहे हैं। अधिकांश जलवायु मॉडल का अनुमान है कि अल-नीनो से संबंधित वर्षा में उतार-चढ़ाव अगले कुछ दशकों में काफी बढ़ जाएगा। जलवायु मॉडल के अनुसार, अल-नीनो और भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून के बीच संबंध भविष्य में और गहरा होगा, खासकर अगर हम उच्च कार्बन उत्सर्जन जारी रखते हैं।

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