ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में बंदरों के वातावरण के मुताबिक खुद को ढालने के बारे में यह दिलचस्प शोध किया है।
करीब डेढ़ करोड़ वर्ष पहले बंदरों के मस्तिष्क में ऐसे बदलाव आने शुरू हुए, जिससे उनका दिमाग मनुष्यों की तरह काम करने लगा था। इन बदलावों के कारण उन्होंने खुदा को ढाला और ज्यादा समय जमीन पर बिताना शुरू किया। वैज्ञानिकों ने 3.6 करोड़ साल पुरानी खोपड़ियों के अवशेषों से मौजूदा बंदरों के मस्तिष्क की तुलना के बाद यह पता लगाया है।
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में बंदरों के वातावरण के मुताबिक खुद को ढालने के बारे में यह दिलचस्प शोध किया है। अध्ययन के नतीजे दिखाते हैं कि कनपटी के पास का हिस्सा यानी वह भाग जो याददाश्त और संवाद जैसे कार्यों के लिए जिम्मेदार होता है, प्राचीन बंदरों के मस्तिष्क में छोटा होता था। जब कनपटी के पास का हिस्सा बड़ा होना शुरू हुआ तो उनके मस्तिष्क का आकार भी दूसरी प्रजातियों के बराबर होने लगा। इसी के सहारे वे शिकारियों की आवाजें भी पहचान पाते हैं।
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में बंदरों के वातावरण के मुताबिक खुद को ढालने के बारे में यह दिलचस्प शोध किया है। अध्ययन के नतीजे दिखाते हैं कि कनपटी के पास का हिस्सा यानी वह भाग जो याददाश्त और संवाद जैसे कार्यों के लिए जिम्मेदार होता है, प्राचीन बंदरों के मस्तिष्क में छोटा होता था। जब कनपटी के पास का हिस्सा बड़ा होना शुरू हुआ तो उनके मस्तिष्क का आकार भी दूसरी प्रजातियों के बराबर होने लगा। इसी के सहारे वे शिकारियों की आवाजें भी पहचान पाते हैं।