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आज है विश्व थैलेसीमिया दिवस, क्या हैं इस बीमारी के लक्षण और बचाव

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अगर शादी से पहले कुंडली मिलान के साथ और गर्भावस्था की पहली तिमाही में थैलेसीमिया की जांच करा लें, तो इस बीमारी को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है। यानी सतर्कता से हम उस रक्त विकार को रोक सकते हैं, जिसके मरीज लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इनकी संख्या करोड़ों में है। आज विश्व थैलेसीमिया दिवस पर लोगों को इसी बीमारी से बचाव की जानकारी देती परीक्षित निर्भय की यह रिपोर्ट…

भारत में थैलेसीमिया का पहला मामला 1938 में सामने आया था। 1994 में पहली बार थैलेसीमिया इंटरनेशनल फेडरेशन ने आठ मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया था। इस साल विश्व थैलेसीमिया दिवस की थीम है, जागरूक रहें। साझा करें। देखभाल : थैलेसीमिया केयर गैप को पाटने के लिए शिक्षा को मजबूत बनाना।

कुंडली मिलान के साथ जांच क्यों
विशेषज्ञों के अनुसार, थैलेसीमिया बीमारी की कुंडली मिलान के साथ जांच इसलिए जरूरी होती है, क्योंकि माता और पिता के जरिये यह बीमारी बच्चों में पहुंचती है। उत्तर पूर्वी राज्यों में यह आम है और यहां के कुछ क्षेत्रों में बीमारी की वाहक आवृत्ति 50 फीसदी तक है। पंजाब में करीब दो फीसदी आबादी में यह मौजूद है। हालांकि, पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में इसकी आवृत्ति कम है। दक्षिणी, मध्य और पश्चिमी राज्यों की आदिवासी आबादी में यह बीमारी 48 फीसदी तक पहुंच गई है।

सिर्फ यही इलाज
थैलेसीमिया का इलाज ब्लड ट्रांसफ्यूजन, केलेशन थेरेपी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट का विकल्प है। बोन मैरो ट्रांसप्लांट महंगा है। इसके लिए डोनर का एचएलए मिलना भी जरूरी है। इसलिए अधिकांश मरीज ब्लड ट्रांसफ्यूजन पर जीवित हैं। – डॉ. तूलिका सेठ, एम्स, नई दिल्ली

आयरन का नियंत्रण बेहद जरूरी
थैलेसीमिया ग्रस्त बच्चे के शरीर में आयरन की मात्रा बढ़ने लगती है। आयरन बढ़ने से लिवर, हृदय पर दुष्प्रभाव होने लगता है। हालांकि, आयरन की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए कुछ दवाएं दी जाती हैं। – डॉ. नितिन गुप्ता, सर गंगाराम अस्पताल, नई दिल्ली 

ब्लड ट्रांसफ्यूजन के भी कई दुष्प्रभाव
मेजर थैलेसीमिया जन्म के साथ ही शुरू हो जाता है, जिससे बार-बार रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। कई बार इन रोगियों में हैपेटाइटिस या फिर एचआईवी भी मिलता है। यह ब्लड ट्रांसफ्यूजन की वजह से भी हो सकता है। – डॉ. वंशश्री, निदेशक, ब्लड बैंक, इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी

50 साल जिंदा रहने के लिए एक करोड़ रुपये का खर्चा
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की रिपोर्ट में थैलेसीमिया रोगी पर कितना खर्च हो सकता है, इसका आकलन बताया गया है। यह आकलन 10 वर्ष पहले तक का है। यानी वर्तमान में यह कई गुना बढ़ा है।

रिपोर्ट के मुताबिक, अगर एक थैलेसीमिया मेजर ग्रस्त बच्चा 30 किलो वजन का है तो उसे ब्लड ट्रांसफ्यूजन और आयरन के लिए सालाना दो लाख रुपये खर्च करने होते हैं। यानी 50 वर्ष तक यह जीवित रहता है तो इस पर एक करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे।

विशेषज्ञों के अनुसार, पौष्टिक भोजन और व्यायाम के जरिये इसे कुछ हद तक नियंत्रित कर सकते हैं। साथ ही, नवजात और गर्भवती मां का नियमित टीकाकरण भी कारगर साबित हो सकता है।

आनुवांशिक विकार
थैलेसीमिया एक स्थायी रक्त विकार यानी क्रोनिक ब्लड डिसऑर्डर है। यह एक आनुवांशिक विकार है, जिसके कारण एक रोगी के लाल रक्त कण यानी आरबीसी में पर्याप्त हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है। इसके कारण एनीमिया हो जाता है और रोगियों को जीवित रहने के लिए हर दो से तीन सप्ताह बाद रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है। बीमारी के तीन चरण-

1- माइनर- हीमोग्लोबिन जीन गर्भधारण के दौरान विरासत में मिलता है। इसमें एक जीन मां और दूसरा पिता से मिलता है। एक जीन में थैलेसीमिया के लक्षण वाले लोगों को वाहक के रूप में जाना जाता है या उन्हें थैलेसीमिया माइनर ग्रस्त कहा जाता है। इसमें व्यक्ति को केवल हल्का एनीमिया होता है।

2- इंटर मीडिया- ये ऐसे मरीज हैं, जिनमें हल्के से गंभीर लक्षण तक मिलते हैं।

3- मेजर- यह थैलेसीमिया का सबसे गंभीर रूप है। ऐसा तब होता है, जब एक बच्चे को माता-पिता प्रत्येक से दो उत्परिवर्तित जीन मिलते हैं। थैलेसीमिया मेजर से ग्रस्त बच्चे में जीवन के पहले वर्ष के दौरान गंभीर एनीमिया के लक्षण विकसित होते हैं। जीवित रहने के लिए उन्हें अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण यानी बोन मैरो ट्रांसप्लांट या नियमित रूप से रक्त चढ़ाए जाने की आवश्यकता होती है।

इनकी मिलती है शिकाय

  • एनीमिया – कमजोर हड्डियां
  • देर से या मंद शारीरिक विकास
  • शरीर में लौह की अधिकता
  • अपर्याप्त भूख – पीली त्वचा
  • बढ़ा हुआ प्लीहा या यकृत

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