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मियां भोपाली के झोले-बतोले: अब एमपी में भी काॅमन सिविल कोड का चुनावी झुनझुना…

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विस्तार

को खां, अगर मधपिरदेश के मुखमंतरी शिवराजसिंह चोहान की माने तो सूबे में काॅमन सिविल कोड लागू करने का वक्त आ गया हे। इसलिए भी कि पिरदेश में अगले बरस विधानसभा चुनाव होने हें ओर बीते दो बरस में सरकार के खाते में कोई एसा बड़ा काम नई हेगा के जिसके बूते वो वोटरों से वोट मांग सके। अब ये ते हेगा के अगले चुनाव में मधपिरदेश में मुसलमानों की बढ़ती आबादी ओर एक शादी दो अहम मुद्दे होंगे। ये बीजेपी का नया चुनावी झुनझुना हे। इस सियासी मुहिम का आगाज शिवराज ने सेंधवा में एक सभा में कर दिया हे।

मियां, काॅमन सिविल कोड( सीसीसी) यानी समान नागरिक संहिता आरएसएस ओर भाजपा का कोर मुद्दा रिया हे। संघ पिरमुख भागवत जी हाल में देश में आबादी के असंतुलन को लेके चेता चुके हें। उनके केने के का मतलब ये था कि मुल्क में हिंदुओं की आबादी आबादी घट रई हे ओर मुसलमानों की बढ़ रई हेगी। यूं टोटल में तो मुसलमान अभी भी 19 फीसदी हेंगे पर आबादी बढ़ने की दर उनमें ज्यादा हेगी। ये ई रफ्तार रई तो मियां, कुछ बरस बाद हिंदू इस मुल्क में अकल्लियत में होंगे। इस खतरे को टालने ओर इसे चुनावी मुद्दा बनाने की नीयत से बीजेपी ने पेले उत्तराखंड में यह दांव चला। मगर उत्तराखंड में मुसलमान हे ईं भोत कम। इसके बाद इस मुद्दे को गुजरात में हो रिए विधानसभा चुनाव में उछाला गया। गुजरात में मुसलमानों की आबादी करीब 19 परसेंट हे। वहां की बीजेपी सरकारो ने केवल काॅमन सिविल कोड लागू करने का ऐलान करा बल्कि इसे लागू करने की खातिर एक कमेटी भी बना दी, जो ते करेगी कि इस सूबों में सीसीसी किस तरह लागू करा जा सकता है। सेंधवा में एक सभा में सीएम शिवराज सिंह ने कहा कि, अब समय आ गया है कि पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करी जाए। उन्होंने कहा कि वे राज्य में भी इससे जुड़ी एक कमिटी बना रिए हें।

खां, मधपिरदेश साल भर बाद विधानसभा चुनाव होने हें, सो बीजेपी  सीसीसी मुद्दे को पेले दो राज्यों में आजमाने में लगी हे। अगर इन दोनो में बीजेपी के माकूल नतीजे आए तो मियां, ते मानो के एमपी में भी अगले विधानसभा चुनाव में काॅमन सिविल कोड का ई डंका बजेगा। मगर ये मुद्दा फेल रिया तो मुमकिन हें के बीजेपी नेता सीसीसी पे चुप्पी साध लें।

आम आदमी के लिए कामन सिविल कोड का मतलब ये हे के धार्मिक, सामाजिक, रीति रिवाजों के मामलों में सभी के लिए एकसा कानून। मतलब इंसान की पेदाइश से लेके पढ़ाई लिखाई, शादी ब्याह ओर तमात दूसरे मसलों में हर समाज के लिए एक जेसा कानून लागू करने की बात हे। इसकी सबसे ज्यादा मुखालिफत मुसलमानों की तरफ से हो रई हे। इस्लाम में अभी भी चार बीवियों की इजाजत हे। हालांकि हकीकत में चार बीवियां भोत कम की होती हेंगी। मगर मजहबी इजाजत तो हे। वही बात बच्चे पेदा करने को लेकर हे। ज्यादातर मुसलमानों का मानना हे के बच्चे अल्लाह की नेमत हें। उनको इस दुनिया में आने से रोकना नापाक हे। सो जित्ते पेदा होते हें, होने दो। हालांकि माली मजबूरियों की वजह से अमीर ओर मिडिल किलास में आजकल मुसलमानों के भी दो तीन से ज्यादा बच्चे नई होते मगर गरीब तबके में इनका हिसाब नई रखा जाता। नतीजतन मुसलमानों का भोत बड़ा तबका माली तोर पे बेहद गरीब हेगा।

मियां, शिवराजजी ने सीसीसी का मुद्दा तो उठा दिया हे मगर मधपिरदेश में भोत से आदिवासी जमातो में भी कई शादियां करने का चलन हेगा, उसका क्या करेंगे? क्या काॅमन सिविल कोड उसपे भी लागू होगा? अगर इसे जबरन लागू करा जाएगा तो क्या आािदवासी समाजों में इसकी मुखालिफत नई होगी? एक तरफ बीजेपी आदिवासी वोटरों को लुभाने में लगी हे, क्योंकि एमपी में आदिवासियों का समर्थन किसी  भी सियासी पार्टी तो हकूमत के तख्त तक पोंचाने के लिए निहायत जरूरी हे। मगर आदिवासियों पे सीसीसी थोपेंगे तो इसका कही उलटा असर नई हो जाए। वेसे एक खतरनाक ट्रेंड ये भी देखने में आ रिया हे के आदिवासियों की जमीने हथियाने कई लोग आदिवासी बच्चियों से शादी कर रिए हे। इनमें कई मुसलमान भी हेंगे।

बहरहाल मियां, सीसीसी बीजेपी का नया चुनावी  हथियार हेगा। अगर पिरदेशों के चुनावों में इसके जरिए वोट मिलने लगें तो ते मानो के अगले लोकसभा चुनाव में भी काॅमन सिविल कोड का मुद्दा सर चढ़ के बोलेगा। भले ई आम लोग इसे ठीक से समझ पाएं या नई। मगर बीजेपी को उम्मीद हेगी के इससे वोटों का धुरवीकरण जरूर होगा। सो पांसे फेंके जा चुके हेंगे। आगे-आगे देखिए होता हे क्या?

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-बतोलेबाज

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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