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गुजरात के एकता नगर में पर्यावरण मंत्रियों के राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ

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गुजरात के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्रीमान भूपेंद्र भाई पटेल, केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी भूपेंद्र यादव जी,अश्विनी चौबे जी, राज्यों से पधारे हुए सारे सभी मंत्रीगण, केंद्र और राज्य सरकार के सभी अधिकारीगण, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

आप सभी का इस राष्ट्रीय सम्मेलन में और विशेषकर के एकता नगर में स्वागत है, अभिनंदन है। एकता नगर में ये राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस अपने आप में मैं महत्‍वपूर्ण मानता हूं। अगर हम वन की बात करें, हमारे आदिवासी भाई-बहनों की बात करें, हम wild life की बात करें, हम जल संरक्षण की चर्चा करें, हम tourism की बात करें, हम प्रकृति और पर्यावरण और विकास, एक प्रकार से एकता नगर उसका जो holistic development हुआ है, वो अपने आप में ये संदेश देता है, विश्वास पैदा करता है कि वन और पर्यावरण के क्षेत्र के लिए आज एकता नगर एक तीर्थ क्षेत्र बन गया है। आप भी इसी क्षेत्र से जुड़े हुए मंत्री और अधिकारी आये हैं। मैं चाहूंगा कि एकता नगर में जितना भी समय आप बिताएं, उन बारीकियों को जरूर observe करें, जिसमें पर्यावरण के प्रति, हमारे आदिवासी समाज के प्रति, हमारे wildlife के प्रति कितनी संवेदनशीलता के साथ कार्य रचना की गई है, निर्माण कार्य हुआ है और भविष्य में देश के अनेक कोने में वन पर्यावरण की रक्षा करते हुए विकास की राह पर तेज गति से आगे बढ़ सकते हैं, इसका बहुत कुछ देखने-समझने को यहां मिलेगा।

साथियों,

हम एक ऐसे समय में मिल रहे हैं जब भारत अगले 25 वर्षों के अमृतकाल के लिए नए लक्ष्य तय कर रहा है। मुझे विश्‍वास है, आपके प्रयासों से पर्यावरण की रक्षा में भी मदद मिलेगी और भारत का विकास भी उ‍तनी ही तेज गति से होगा।

साथियों,

आज का नया भारत, नई सोच, नई अप्रोच के साथ आगे बढ़ रहा है। आज भारत तेज़ी से विकसित होती economy भी है, और निरंतर अपनी ecology को भी मजबूत कर रहा है। हमारे forest cover में वृद्धि हुई है और wetlands का दायरा भी तेज़ी से बढ़ रहा है। हमने दुनिया को दिखाया कि renewable energy के मामले में हमारी स्पीड और हमारा स्केल शायद ही कोई इसको match कर सकता है। International Solar Alliance हो, Coalition for Disaster Resilient Infrastructure हो, या फिर LIFE movement, बड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए भारत आज दुनिया को नेतृत्व दे रहा है। अपने कमिटमेंट को पूरा करने के हमारे ट्रैक रिकॉर्ड के कारण ही दुनिया आज भारत के साथ जुड़ भी रही है। बीते वर्षों में शेरों, बाघों, हाथियों, एक सींग के गेंडों और तेंदुओं की संख्या में वृद्धि हुई है। जैसे अभी भूपेंद्र भाई बता रहे थे, कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश में चीता की घर वापसी से एक नया उत्साह लौटा है। हर भारतवासी के रगों में, संसकारों में, जीव मात्र के प्रति दया और प्रकृति प्रेम के संस्कार कैसे हैं, वो चीता के स्वागत में देश जिस प्रकार से झूम उठा था। हिन्‍दुस्‍तान के हर कोने में ऐसा लग रहा था, जैसा उनके अपने घर में कोई प्रिय मेहमान आया है। ये हमारे देश की एक ताकत है। प्रकृति के साथ संतुलन साधने का जो ये प्रयास है उसे हम निरंतर जारी रखें। आने वाली पीढ़ीयों को भी संस्कारित करते रहें। इसी संकल्प के साथ भारत ने 2070 यानी अभी हमारे पास करीब-करीब 5 दशक हैं, Net zero का टार्गेट रखा है। अब देश का फोकस ग्रीन ग्रोथ पर है और जब ग्रीन ग्रोथ की बात करते हैं, तो ग्रीन जॉब्स के लिए भी बहुत अवसर पैदा होते हैं। और इन सभी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए, हर राज्य के पर्यावरण मंत्रालय की भूमिका बहुत बड़ी है।

साथियों,

पर्यावरण मंत्रालय, चाहे जिस किसी राज्य में हो या केंद्र में, उनके दायित्वों का विस्तार बहुत बड़ा है। इसे संकुचित दायरे में नहीं देखा जाना चाहिए। दुर्भाग्य से समय के साथ हमारी व्यवस्था में एक सोच ये हावी होती चली गई कि पर्यावरण मंत्रालय की भूमिका, रेग्युलेटर के तौर पर ज्यादा है। लेकिन मैं समझता हूं, पर्यावरण मंत्रालय का काम, रेग्युलेटर से भी ज्यादा, पर्यावरण को प्रोत्साहित करने का है। हर वो काम, जिससे पर्यावरण की रक्षा हो रही हो, उसमें आपके मंत्रालय का रोल बहुत बड़ा है। अब जैसे सर्कुलर इकोनॉमी का विषय है। सर्कुलर इकोनॉमी हमारी परंपरा का हिस्सा रही है। भारत के लोगों को सर्कुलर इकोनॉमी सिखानी पड़े, ऐसा नहीं है। हम कभी प्रकृति के शोषक नहीं रहे, सदैव प्रकृति के पोषक रहे हैं। हम जब छोटे थे तब हमको बताया जाता था कि महात्मा गांधी जब पिछली शताब्दी के प्रारंभ में साबरमती आश्रम में रहते थे और उस जमाने में तो साबरमती नदी लबालब भरी रहती थी, भरपूर पानी रहता था। इसको बावजूद भी, अगर किसी को गांधी जी ने देख लिया कि पानी को बर्बाद कर रहा है तो गांधी जी उसे टोके बिना रहते नहीं थे। इतना पानी सामने होता था फिर भी पानी बर्बाद नहीं होने देते थे। आज कितने ही घरों में आप में से शायद हर एक कोई को पता होगा, हर एक के घर में होगा, अनेक घर ऐसे हैं कपड़े हो, अखबार हो और भी छोटी-मोटी चीजें हों, हर चीज को हमारे यहां reuse किया जाता है, recycle किया जाता है और जब तक उसका बिलकुल समाप्ती न हो जाए तब तक हम उपयोग करते रहते हैं, अपने परिवार का वो संस्कार है। और ये कोई कंजूसी नहीं है, ये प्रकृति के प्रति सजगता है, संवेदना है। ये कोई कंजूसी के कारण लोग एक ही चीज दस बार उपयोग करते हैं, ऐसा नहीं है। ये सभी हमारे जो पर्यावरण मंत्री आज आए हैं, मैं उनको आग्रह करूंगा कि आप भी अपने राज्यों में सर्कुलर इकोनॉमी को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दें। अगर स्कूल में भी बच्चों को कहा जाए कि भाई आप अपने घर में सर्कुलर इकोनॉमी की दृष्टि से क्या हो रहा है, जरा ढूंढ के ले आओ, हर बच्‍चा ढूंढ के ले आएगा। consciousness आएगा किसको सर्कुलर इकोनॉमी कहते हैं और इससे Solid Waste management और सिंगल यूज़ प्लास्टिक से मुक्ति के हमारे अभियान को भी ताकत मिलेगी। इसके लिए हमें पंचायतों, स्थानीय निकायों, स्वयं सहायता समूहों वहां से लेकर MSMEs तक को प्रोत्साहित करना चाहिए। उनको दिशा देनी चाहिए, उनको guideline देनी चाहिए।

साथियों,

सर्कुलर इकॉनॉमी को गति देने के लिए ही अब पिछले साल हमारी सरकार ने, अपनी भारत सरकार ने Vehicle Scrapping Policy भी लागू की है। अब क्‍या राज्‍यों में ये Vehicle Scrapping Policy को लाभ उठाने के लिए कोई रोडमैन बना क्‍या। उसके लिए जो प्राइवेट पार्टियों का इंवेस्‍टमेंट चाहिए, उनको जमीन चाहिए ताकि Scrapping को implement करने में काम आए। उसी प्रकार से जैसे मैंने भारत सरकार को सूचना दी कि Scrapping Policy को हमें बहुत गति देनी है तो हमें पहले भारत सरकार के जितने Vehicle हैं, जो अपनी उम्र पार कर चुके हैं, जो किलोमीटर पार कर चुके हैं उनको Scrapping में सबसे पहले लाओ ताकि उद्योग चालू हो जाए। क्या राज्यों में भी पर्यावरण मंत्रालय अपने राज्य को sensitise करें कि भाई आपके राज्‍य में जितने भी Vehicle होंगे, उसको Scrapping Policy में सबसे पहले हम शुरू कर लें। Scrapping करने वालों को बुला लें और फिर उसके कारण नई गाड़ियां भी आएंगी। fuel भी बचेगा, एक प्रकार से हम बहुत बड़ी मदद कर सकते हैं लेकिन नीति अगर भारत सरकार ने बनाई, पड़ी रही है तो परिणाम नहीं आएगा। देखिए, सभी पर्यावरण मंत्रालयों को देश की biofuel पॉलिसी पर भी तेज गति से काम करने की आवश्यकता है। अब देखिए biofuel में हम कितनी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन अगर राज्यों का भी अगर ये कार्यक्रम बन जाए, राज्‍य तय करे कि हमारे राज्य के जितने Vehicle हैं, उसमें हम सबसे ज्यादा biofuel blending करके ही Vehicle चलाएंगे। देश में competition का माहौल बनेगा। देखिए पर्यावरण मंत्रालयों को इस पॉलिसी को own करना होगा, उसे ग्राउंड पर मजबूती से ले जाना होगा। आजकल देश इथेनॉल ब्लेंडिंग में नए रिकॉर्ड आज भारत बना रहा है। अगर राज्‍य भी इसके साथ जुड़ जाएं तो हम कितनी तेजी से बढ़ सकते हैं। मेरा तो सुझाव ये भी होगा कि हम इथेनॉल उत्पादन और इथेनॉल ब्लेंडिंग राज्यों के बीच में स्‍पर्धा हो। साल में एक बार उनको certified किया जाए कि कौन राज्य… और इसी दौरान हमारे किसानों को बहुत मदद मिलेगी। खेत का जो waste है वो भी इनकम देना शुरू कर देगा। हमें इस healthy competition को बढ़ावा देना है। ये तंदुरुस्त स्पर्धा राज्यों के बीच, शहरों के बीच होती रहनी चाहिए। देखिएगा, इससे पर्यावरण की रक्षा के हमारे संकल्प को जन भागीदारी की ताकत मिल जाएगी और जो चीज आज हमें रुकावट लगती है वो हमारे लिए नई क्षितिजों को पार करने का एक बहुत बड़ा माध्यम बन जाएगी। अब देखिए, हम सबने अनुभव किया है कि LED बल्ब बिजली बचाता है। कार्बन एमीशन बचाता है, पैसे बचाता है। क्‍या हमारा पर्यावरण मंत्रालय, हमारे राज्य का बिजली मंत्रालय, हमारा राज्य का अर्बन मंत्रालय लगातार बैठ करके मॉनिटर करे कि भाई LED बल्ब हर स्ट्रीट लाइट पर लगा है कि नहीं लगा है, हर सरकारी दफ्तरों में LED बल्ब लगा है कि नहीं लगा है। LED का एक जो सारा मोवमेंट चला है जो इतनी बचत करता है, पैसे बचाता है, Environment की भी सेवा करता है। आप इसको lead कर सकते हैं। आपका department lead कर सकता है। उसी प्रकार से हमें हमारे संसाधनों को भी बचाना है। अब पानी है, हर कोई कहता है पानी को बचाना एक बहुत बड़ा काम है। अभी जो हमने आजादी का अमृत महोत्‍सव में 75 अमृत सरोवर बनाने के लिए कहा है, क्‍या पर्यावरण मंत्रालय वन विभाग इसको lead कर रहा है क्‍या। जल संरक्षण को बल दे रहा है क्‍या। उसी प्रकार से पर्यावरण मंत्रालय और agriculture ministry मिलकर के वे drip irrigation टपक सिंचाई micro irrigation उस पर बल देता है क्‍या। यानी पर्यावरण मंत्रालय ऐसा है कि जो हर मंत्रालय को दिशा दे सकता है, गति दे सकता है, प्रेरणा दे सकता है और परिणाम ले सकता है। आजकल हम देखते हैं कि कभी जिन राज्‍याें में पानी की बहुलता थी, ग्राउंड वॉटर ऊपर रहता था वहां आज पानी के लिए बहुत बड़ा जंग करना पड़ा रहा है। पानी की किल्‍लत है, 1000-1200 फीट नीचे जाना पड़ रहा है।

साथियों,

ये चुनौती सिर्फ पानी से जुड़े विभागों की नहीं है बल्कि पर्यावरण को भी उसे इतना ही बड़ी चुनौती समझना चाहिए। आजकल आप देख रहे हैं कि देश के हर जिले में जैसा मैंने आपको कहा अमृत सरोवर का अभियान चल रहा है, अब अमृत सरोवर water security के साथ ही environment security से भी जुड़ा हुआ है। उसी प्रकार से इन दिनों आपने देखा होगा हमारे किसानों में केमिकल फ्री खेती, नेचुरल फार्मिंग अब यूं तो लगता है कि एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट का है लेकिन अगर हमारा पर्यावरण मंत्रालय जुड़ जाए तो इसको एक नई ताकत मिल जाएगी। प्राकृतिक खेती, ये भी पर्यावरण की रक्षा का काम करता है। ये हमारी धरती माता की रक्षा करना, ये भी एक बहुत बड़ा काम है। इसलिए ही मैं कहता हूं कि बदलते हुए समय में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा participating और integrated approach लेकर काम करना बहुत आवश्यक है। जब पर्यावरण मंत्रालयों की दृष्टि बदलेगी, लक्ष्‍य तय होंगे, राह निर्धारित हो जाएगी, मुझे पूरा विश्वास है साथियों, प्रकृति का भी उतना ही भला होगा।

साथियों,

पर्यावरण की रक्षा का एक और पक्ष, जन-जागरूकता, जन-भागीदारी, जन-समर्थन, ये बहुत आवश्यक है। लेकिन ये भी सिर्फ सूचना विभाग या शिक्षा विभाग का काम नहीं है। जैसे आप सभी को भली-भांति पता है कि देश में जो हमारी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति अब सचमुच में आपके लिए भी उपयोगी है और आपके डिपार्टमेंट के लिए भी, उसमें एक विषय है Experienced Based Learning पर, उस पर जोर दिया गया है। अब ये Experienced Based Learning क्‍या पर्यावरण मंत्रालय ने शिक्षा विभाग के साथ बात की क्या कि भाई आप स्‍कूल में बच्चों को पेड़-पौधों के विषय में जरा पढ़ाना है तो उनको जरा बगीचे में ले जाइए। गांव के बाहर जो पेड़-पौधों हैं, वहां ले जाइए, पेड़-पौधों का परिचय करवाइए। अब ये शिक्षा मंत्रालय और पर्यावरण मंत्रालय मिलकर के काम करें। तो उन बच्‍चों में पर्यावरण के प्रति स्वाभाविक जागरूकता आएगी और इससे बच्‍चों में जीव-विविधता के प्रति अधिक जागरुकता आएगी और पर्यावरण की रक्षा के लिए उनके दिल-दिमाग में वो ऐसे बीज बो सकते हैं जो आने वाले समय में पर्यावरण की रक्षा के लिए एक बहुत बड़े सिपाही बन जाएंगे। इसी तरह अब जो बच्चे हमारे समुंद्री तट पर हैं, या नदी के तट पर हैं, वहां बच्‍चों को ये पानी का महत्व, समुद्र की इको सिस्‍टम क्‍या होती है, नदी की इको सिस्‍टम क्‍या होती है, वहां ले जाकर के उनको सिखाया जाए। मछली का क्‍या महत्‍व होता है। मछली भी किस प्रकार से पर्यावरण की रक्षा करने में मदद कर रही है। सारी बातें उन बच्चों को लेकर के उनको समझाएंगे, काम तो शिक्षा विभाग का होगा, लेकिन पर्यावरण के विभाग के लोग आप देखिए पूरी नई पीढ़ी तैयार हो जाएगी। हमने अपने बच्‍चों को आने वाली पीढ़ियों को पर्यावरण के प्रति जागरुक भी करना है, उन्‍हें संवेदनशील भी करना है। राज्‍यों के पर्यावरण मंत्रालयों को इससे जुड़े अभियान शुरू करने चाहिए। योजना बनानी होंगी अब जैसे किसी स्‍कूल में फल का एक पेड़ है, तो बच्चे उसकी जीवनी लिख सकते हैं, पेड़ की जीवन लिखें। किसी औषधीय पौधे के गुणों के बारे में भी बच्चों से निबंध लिखवाया जा सकता है, बच्‍चों में स्‍पर्धा की जा सकती है। हमारे राज्यों की यूनिवर्सिटीज और लैबोरेटरीज को भी जय अनुसंधान के मंत्र पर चलते हुए पर्यावरण रक्षा से जुड़े innovations को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। पर्यावरण की रक्षा में हमें टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल भी ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना चाहिए। जैसे जो वन स्थान हैं, जंगल हैं, उनमें जंगलों की स्थिति का निरंतर अध्ययन बहुत जरूरी है। हम स्पेस टेक्नोलॉजी से हम लगातार अपने जंगलों का मॉनिटरिंग कर सकते हैं। बदलाव आया तो तुरंत मार्क कर सकते हैं, सुधार कर सकते हैं।

साथियों,

पर्यावरण से जुड़ा एक और अहम विषय है, Forest Fire का भी। जंगलों में आग बढ़ रही है और भारत जैसे देश के लिए अगर एक बार आग फैल गई तो हमारे पास उतने संसाधन भी कहां हैं कि हम आधुनिक टेक्नोलॉजी से आग को बुझा पाएंगे। दुनिया के समृद्ध देशों को आपने देखा होगा टीवी पर, चाहे पश्चिमी अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया हो, पिछले दिनों यहां जो Forest Fire हुआ, जो जंगलों में आग लगी। कितनी तबाही हुई, वन्य पशुओं की बेबसी even जन जीवन को भी प्रभावित कर दिया। उसके ashes के कारण मीलों तक लोगों का जीना मुश्किल हो गया। Wild-Fire की वजह से Global Emission में भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है जी, नगण्य है लेकिन फिर भी हमें अभी से जागरूक होना होगा। अभी से हमारी योजना होनी चाहिए। हर राज्य में Forest Fire Fighting Mechanism मजबूत हो, वो Technology Driven हो, ये बहुत जरूरी है। उसी प्रकार से हम सबको मालूम है आखिर आग लगने का कारण क्‍या होता है, जो सूखे पत्ते जंगलों में पड़ते हैं, उनका ढेर होता है और एक आद छोटी सी गलती देखते ही देखते पूरे जंगल को आग पकड़ लेती है। लेकिन अब ये जंगलों में जो waste पड़ता है ना, पत्तियां पड़ती हैं, घर के अंदर जब सारा जंगल जमीन पर सब पत्तियां नजर आती हैं, आजकल उसका भी सकुर्लर इकोनॉमी में उपयोग होता है। आजकल उसमें से खाद भी बनता है। आजकल उसमें से कोयला बनाया जाता है। मशीन होते हैं छोटे-छोटे मशीन लगाकर के उसमें से कोयला बनाया जा सकता है, वो कोयला कारखानों में काम आ सकता है। मतलब हमारा जंगल भी बच सकता है और हमारी ऊर्जा भी बच सकती है। कहने का मेरा तात्पर्य है कि हमें इसमें भी Forest Fire के लिए हमारी जागरूकता, वहां के लोगों के लिए भी इनकम का साधन, जो लोग जंगल में रहते हैं जैसे हमारा वन धन पर बड़ा बल है, उसी प्रकार से इसको भी एक धन मानकर के हैंडल किया जाए। तो हम जंगलों की आग को बचा सकते हैं। हमारे Forest Guard को भी अब नए सिरे से ट्रेनिंग देने की बहुत जरूरत है जी। Human Resource Development के नए पहलुओं को जोड़ने की आवश्‍यकता है। पुराने जमाने के जो बिट गार्ड होते हैं, उतने से बात बनने वाली नहीं है।

साथियों,

मैं आप सभी से एक और महत्वपूर्ण बिंदु की भी चर्चा करना चाहता हूं। आप भली-भांति जानते हैं कि आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर के बिना, देश का विकास, देशवासियों के जीवन स्तर को सुधारने का प्रयास सफल नहीं हो सकता। लेकिन हमने देखा है कि Environment Clearance के नाम पर देश में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण को कैसे उलझाया जाता था। आप जिस जगह पर बैठे हैं ना ये एक एकता नगर में, ये हमारे आंखे खोलने वाला उदाहरण है। कैसे अर्बन नक्सलियों ने, विकास विरोधियों ने, इस इतने बड़े प्रकल्‍प को, सरदार सरोवर डैम को रोक के रखा था। आपको जानकर के हैरानी होगी साथियों, ये जो सरदार सरोवर डैम एकता नगर में आप बैठे हैं ना, इतना बड़ा जलाशय देखा होगा आपने, इसका शिलान्यास देश आजाद होने के तुरंत बाद किया था, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। पंडित नेहरू ने शिलान्यास किया था लेकिन सारे अर्बन नक्सल मैदान में आ गए, दुनिया के लोग आ गए। काफी प्रचार किया ऐसा ये पर्यावरण विरोधी है, ये ही अभियान चलाया और बार-बार उसको रोका गया। जो काम की शुरुआत नेहरू जी ने की थी, वो काम पूरा हुआ मेरे आने के बाद। बताइए, कितना देश का पैसा बर्बाद हो गया। और आज वही एकता नगर पर्यावरण का तीर्थ क्षेत्र बन गया। मतलब कितना झूठ चलाया था, और ये अर्बन नक्सल, आज भी चुप नहीं है, आज भी उनके खेल खेल रहे हैं। उनके झूठ पकड़े गए, वो भी स्‍वीकार करने को तैयार नहीं हैं और उनको अब राजनीतिक समर्थन मिल जाता है कुछ लोगों का।

साथियों,

भारत मे विकास को रोकने के लिए कई ग्लोबल इंस्टिट्यूशन भी, कई फाउंडेशंस भी ऐसे बड़े पसंद आने वाले विषय पकड़ करके तूफान खड़ा कर देते हैं और ये हमारे अर्बन नक्‍सल उसको माथे पर लेकर के नाचते रहते हैं और हमारे यहां रुकावट आ जाती है। पर्यावरण की रक्षा के संबंध में कोई compromise न करते हुए भी संतुलित रूप से विचार करके हमें ऐसे लोगों की साजिशों को जो वर्ल्‍ड बैंक तक को प्रभावित कर देते हैं बड़े-बड़े judiciary को प्रभावित कर देते हैं। इतना आप प्रचार कर देते हैं, चीजें अटक जाती हैं। मैं चाहता हूं कि हमें इन सारे विषयों में एक holistic approach अपना कर आगे बढ़ना चाहिए।

साथियों,

हमारा प्रयास होना चाहिए कि बेवजह पर्यावरण का नाम लेकर Ease of Living और Ease of Doing Business के रास्ते में कोई बाधा ना खड़ी करे। कैसे बाधा बनती है, मैं उदाहरण देता हूं गुजरात में पानी का संकट हमेशा रहता है, दस साल में सात साल अकाल के दिन रहते थे। तो हमने check dam का बड़ा अभियान चलाया। हम चाहते थे फॉरेस्ट में भी पानी का प्रबंध हो, तो हम फॉरेस्ट में पानी की जो ढलान होती है, उस पर जो छोटे-छोटे यानी dining table जितने छोटे छोटे तालाब बनाना, बहुत छोटे तालाब, 10 फुट लंबे हों, 3 फुट चौड़े हों, 2 फुट गहरे हों। और उसके पूरे लेयर बनाते जाना, ऐसा हमने सोचा। आप हैरान होंगे, फॉरेस्ट मिनिस्ट्री ने मना कर दिया। अरे मैंने कहा भाई ये पानी होगा, तभी तो तुम्‍हारा फॉरेस्ट बचेगा। आखिरकार मैंने उनको कहा अच्‍छा फॉरेस्ट विभाग को ही पैसे देता हूं, आप check dam बनाइए, पानी बचाइए और जंगलों को ताकत दीजिए। तब जाकर के बड़ी मुश्किल से मैं वो काम कर पाया था। मतलब हम Environment के नाम पर फॉरेस्ट पर भी अगर पानी का प्रबंध नहीं करेंगे तो काम कैसे चलेगा।

साथियों,

हमें याद रखना है कि जितनी तेजी से Environment Clearance मिलेगी, उतना ही तेज विकास भी होगा। और compromise किये बिना ये हो सकता है। मुझे बताया गया है, आप सभी राज्यों के लोग बैठे हैं, आज की तारीख में Environmental Clearance के 6 हजार से ज्यादा काम आपके मंत्रालयों में pending पड़े हुए हैं। इसी तरह Forest Clearance की भी करीब करीब 6500 प्रोजेक्ट उनकी Application आपकी टेबलों पर लटकी पड़ी है। क्‍या साथियों आज के आधुनिक युग में, अच्‍छा वो भी तीन महीने के बाद Clearance मिलेगा, तो कारण कुछ और है। हमें बिल्कुल कोई parameter तय करने चाहिए, निष्पक्ष भाव से करना चाहिए और पर्यावरण की रक्षा करते हुए Clearance देने में गति लानी चाहिए। हमें रुकावट नहीं बनना चाहिए। आप अंदाजा लगा सकते हैं Pendency की वजह से हमारे प्रोजेक्‍ट लोगों को फायदा नहीं होता है। खर्च भी बढ़ जाता है, समस्‍याएं बढ़ जाती हैं। हमें कोशिश करनी चाहिए Pendency कम से कम हो और genuine केस में ही Pendency हो, तेजी से Clearance मिले, इसे लेकर हमें एक Work Environment को भी बदलने की जरूरत है। जो Environment रक्षा की हम बात करते हैं ना Work Environment भी बदलना पड़ेगा। मैंने अक्सर देखा है कि जिस प्रोजेक्ट को लंबे समय से Environmental Clearance नहीं मिल रही है, Forest Clearance नहीं मिल रही है, तो मैंने देखा है कि राज्य सरकारें मुझे चिट्टियां लिखती हैं, कभी भारत सरकार के डिपार्टमेंट मुझे चिट्टियां लिखते हैं कि फलाने राज्‍य में अटका हुआ है। कोई राज्‍य वाला कहता है भारत सरकार में अटका हुआ है। मैं ऐसे प्रोजेक्ट को प्रगति के अंदर लाता हूं और मैं हैरान हूं जैसे ही वो प्रगति में आ जाता है फटाफट राज्यों में भी, केंद्र में भी Clearance शुरू हो जाता है। मतलब Environment का issue हो तो Clearance नहीं होता। तो कोई न कोई ऐसी बातें हैं, ढीलापन है, वर्क कल्चर ऐसा है जिसके कारण हमारी ये गड़बड़ हो रही है। और इसलिए मैं आपसे आग्रह करूंगा कि हम सबने मिलकर के चाहे केंद्र हो या राज्‍य हो या स्‍थानीय स्‍वराज्‍य हो, ये डिपार्टमेंट हो, वो डिपार्टमेंट हो, मिलकर के काम करेंगे तो ऐसी कोई रूकावटें नहीं आएंगी। अब आप देखते हैं, टेक्‍नोलॉजी का उपयोग हो रहा है। परिवेश पोर्टल आप सबने देखा होगा, परिवेश पोर्टल पर्यावरण से जुड़े सभी तरह के clearance के लिए single-window माध्यम बना है। ये transparent भी है और इससे अप्रूवल के लिए होने वाली भागदौड़ भी कम हो रही है। 8 साल पहले तक environment clearance में जहां 600 से ज्यादा दिन लग जाते थे, याद रखो दोस्‍तों, पहले 600 दिन से ज्‍यादा समय लग जाता था clearance में। आज टेक्‍नोलॉजी की मदद से उससे ज्‍यादा अच्‍छे ढंग से साइंटिफिक तरीके से काम होता है और सिर्फ 75 दिन के अंदर काम पूरा हो जाता है। पर्यावरण स्वीकृति देने में हम नियमों का भी ध्यान रखते हैं और उन क्षेत्र के लोगों के विकास को भी प्राथमिकता देते हैं। यानी ये economy और ecology दोनों के लिए win-win situation होती है। आपको मैं एक और उदाहरण देता हूं। अभी कुछ सप्ताह पहले ही केंद्र सरकार ने दिल्ली में प्रगति मैदान टनल को देश को समर्पित किया है। इस टनल की वजह से दिल्ली के लोगों की जाम में फंसने की परेशानी कम हुई है। प्रगति मैदान टनल हर साल 55 लाख लीटर से ज्यादा ईंधन बचाने में भी मदद करेगी। अब ये पर्यावरण की भी रक्षा है, इससे हर साल करीब-करीब 13 हजार टन कार्बन एमिशन कम होगा। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इतने कार्बन एमिशन को कम करने के लिए हमें 6 लाख से ज्यादा पेड़ों की जरूरत पड़ती है। यानि डेवलेपमेंट के उस काम ने पर्यावरण की भी मदद करी। यानि फ्लाईओवर हों, सड़कें हों, एक्सप्रेसवे हों, रेलवे के प्रोजेकट्स हों, इनका निर्माण कार्बन एमिशन कम करने में उतनी ही मदद करता है। Clearance के समय, हमें इस एंगल को नजर-अंदाज नहीं करना चाहिए।

साथियों,

पीएम गति शक्ति नेशनल मास्टर प्लान इसके लागू होने के बाद से, इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रोजेक्ट्स में तालमेल बहुत बढ़ा है और राज्‍य भी इससे बड़े खुश हैं, राज्‍य बहुत बढ़-चढ़कर के इसके फायदे उठा रहे हैं। उसके कारण प्रोजेक्ट्स में भी तेजी आई है। पीएम गति शक्ति नेशनल मास्टर प्लान, पर्यावरण की रक्षा में भी अभूतपूर्व मदद कर रहा है। हमें ये भी देखना होगा कि जब भी राज्य में किसी infrastructure का निर्माण हो, अब ये हमें क्लाइमेट के कारण जो समस्‍याएं आ रही हैं, हम देख रहे हैं। इसका मतलब ऐसी समस्‍याओं में टिका रहे, वैसा infrastructure बनाना पड़ेगा, disaster resilient हो। हमें Climate से जुड़ी चुनौतियों का सामना करते हुए, अर्थव्यवस्था के हर उभरते हुए सेक्टर का सही इस्तेमाल करना है। केंद्र और राज्य सरकार, दोनों को मिलकर green industrial economy की तरफ बढ़ना है।

साथियों,

मुझे विश्वास है, इन 2 दिनों में आप पर्यावरण रक्षा के भारत के प्रयासों को और अधिक सशक्त करेंगे। पर्यावरण मंत्रालय, सिर्फ रेग्यूलेटरी ही नहीं बल्कि लोगों के आर्थिक सशक्तिकरण और रोजगार के नए साधन बनाने का भी बहुत बड़ा माध्यम है। एकता नगर में आपको सीखने के लिए, देखने के लिए बहुत कुछ मिलेगा। गुजरात के करोड़ों लोगों को, राजस्थान के करोड़ों लोगों को, महाराष्ट्र के करोड़ों लोगों को, मध्‍य प्रदेश के लोगों को बिजली के कारण एक सरदार सरोवर डैम ने चार राज्‍यों के जीवन को प्रभावित किया है, सकारात्मक प्रभाव पैदा किया। राजस्थान के रेगिस्तान तक पानी पहुंचा है, कच्‍छ के रेगिस्तान तक पानी पहुंचा है और बिजली पैदा होती है। मध्‍य प्रदेश को बिजली मिल रही है। सरदार साहब की इतनी विशाल प्रतिमा हमें एकता के प्रण पर डटे रहने की, प्रेरणा देती है। Ecology और Economy कैसे साथ-साथ विकास कर सकते हैं, कैसे Environment भी मजबूत किया जा सकता है और Employment के नए अवसर भी बनाए जा सकते हैं, कैसे Bio-Diversity, Eco-Tourism बढ़ाने का इतना बड़ा माध्यम बन सकती है, कैसे हमारी वन-संपदा, हमारे आदिवासी भाई-बहनों की संपदा में वृद्धि करती है, इन सारी बातों का उत्तर, सारे प्रश्नों का समाधान, केवड़िया में, एकता नगर में आप सबको एक साथ नजर आता है। एकता नगर डेक्लेरेशनआज़ादी के अमृतकाल के लिए बेहतर समाधान लेकर आएगा, इसी विश्वास के साथ आप सभी को शुभकामनाएं। और साथियों, मैं भारत सरकार के मंत्रालय के सभी अधिकारियों को मंत्री महोदय को बधाई देता हूं कि उन्‍होंने इस कार्यक्रम की रचना की। मेरा आपसे आग्रह है जो lectures होंगे, जो चर्चाएं होंगी उसका अपना महत्‍व होता ही है। लेकिन सबसे ज्‍यादा महत्‍व आप दो दिन जो साथ रहेंगे ना, एक-दूसरे के अनुभव जानेंगे, हर राज्‍य ने कुछ न कुछ अच्‍छे प्रयोग किये होंगे, अच्‍छे initiative लिये होंगे। जब अपने साथियों से अन्‍य राज्‍यों के आपका परिचय बढ़ेगा, उनके बाते करोगे तो आपको भी नए नए ideas मिलेंगे, आपको भी नई नई बातें औरों को बताने का मौका मिलेगा। यानी ये एक दो दिन आप में एक बहुत बड़ा प्रेरणा का कारण बन जाएंगी। आप स्वयं ही एक दूसरे की प्रेरणा बनेंगे। आपके साथी आपकी प्रेरणा बनेंगे। इस वातावरण को लेकर के ये दो दिवसीय मंथन देश के विकास के लिये, पर्यावरण की रक्षा के लिए और आने वाली पीढ़ी को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए सही दिशा लेकर के, सही विकल्प लेकर के एक निश्चित रोडमैप लेकर के हम सब चलेंगे, इसी अपेक्षा के साथ आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं। बहुत-बहुत धन्यवाद !

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