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स्वतंत्रता दिवस विशेष: बांदा नवाब ने जान पर खेलकर बिठूर पहुंच कर रानी लक्ष्मी बाई से बंधवाई थी राखी

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रानी लक्ष्मीबाई, नवाब 

रानी लक्ष्मीबाई, नवाब 

रानी लक्ष्मीबाई, नवाब 

 

-रानी लक्ष्मीबाई का साथ देना नवाब पर पड़ा था भारी, अंग्रेजों ने किया था नजरबंद

बुन्देलखण्ड में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और बांदा नवाब अली बहादुर के बीच भाई-बहन का रिश्ता था। रानी लक्ष्मीबाई द्वारा मदद मांगने पर बांदा नवाब ने दस हजार सैनिकों के साथ अंग्रेजों से युद्ध किया था। युद्ध के दौरान ही जब रक्षाबंधन का त्योहार पड़ा, तब रानी लक्ष्मी बाई अपने मायके कानपुर बिठूर आ गईं।

उधर अंग्रेज पुलिस बांदा नवाब, रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे की गिरफ्तारी के लिए पूरा जोर लगा रही थी। इस दौरान अपनी जान पर खेलकर नाव के सहारे गंगा नदी से होते हुए बांदा नवाब ने बिठूर पहुंच कर रानी लक्ष्मीबाई से राखी बंधवाई। रानी लक्ष्मीबाई के शहीद होने पर मुस्लिम होते हुए भी उनका अन्तिम संस्कार किया था।

नवाब बांदा के वंशज इस समय नवाब शादाब अली बहादुर नवाब बांदा हाउस फतेहगढ़ भोपाल में रहते हैं। वह बताते हैं कि उनके पूर्वज अली बहादुर नवाब बांदा अली बहादुर अपनी मुंहबोली बहन लक्ष्मीबाई की चिठ्ठी पर अपनी रियासत, दौलत, खजाना सबकुछ दांव पर लगा दिया और दस हजार सैनिकों के साथ झांसी जाकर रानी लक्ष्मीबाई के लिए फिरंगियों से लड़े और ग्वालियर पर कब्जा भी कर लिया। नवाब शादाब अली बहादुर के अनुसार उनका परिवार हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। इनके पूर्वज बाजीराव पेशवा एवं कुंवर मस्तानी जो महाराजा क्षत्रसाल की पुत्री थीं तथा नवाब अली बहादुर रानी लक्ष्मीबाई के मुंहबोले भाई थे और बाजीराव पेशवा के परपोते थे। उन्हें रानी लक्ष्मीबाई राखी बांधती थीं।

उन्होंने बताया कि युद्ध के दौरान ही रानी लक्ष्मीबाई ने नवाब अली बहादुर से वचन लिया था कि भैया मेरा पार्थिव शरीर फिरंगियों के हाथों न लगने देना। इसीलिए 18 जून, 1858 को जब रानी लक्ष्मीबाई युद्ध में लड़ते हुए शहीद हुईं तो नवाब अली बहादुर ने साधु का वेश धारण करके बाबा गंगादस राव की कुटिया में ले जाकर अपनी मुंहबोली बहन का वचन पूरा किया। नवाब अली बहादुर धर्म से मुसलमान थे। फिर भी रानी की चिता जलवाई और राखी का रिश्ता निभाया। नवाब अली बहादुर को इसकी बड़ी सजा भुगतनी पड़ी। अंग्रेजों ने नवाब अली बहादुर का सारा खजाना जब्त कर रियासत से बेदखल कर इंदौर के पास महू में पूरे परिवार के साथ नजरबन्द कर दिया और छत्तीस हजार रुपये पेंशन देते रहे। आजादी के बाद नवाब अली बहादुर के पोते नवाब सैफ अली सीहोर आ गए और वर्तमान में नवाब सैफ अली बहादुर के पुत्र नवाब अश्फाक अली बहादुर एवं पोते नवाब शादाब अली बहादुर भोपाल में रहते हैं।

उल्लेखनीय है कि रानी लक्ष्मीबाई की बांदा के नवाब अली बहादुर से मुलाकात तात्या टोपे ने कराई थी। तात्या टोपे और बांदा के नवाब अली में गहरी दोस्ती थी। इतिहासकारों के मुताबिक लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों के बीच युद्ध चल रहा था। इसी बीच रक्षाबन्धन का त्योहार पड़ा। रानी बिठूर में अपने मायके पहुंच गईं। अंग्रेज फौज तात्या व अली बहादुर के साथ रानी को गिरफ्तार करने के लिए जोर लगा रही थी। इन स्थितियों में भी नवाब अली बहादुर बांदा से निकलकर फतेहपुर पहुंचे और वेश बदलकर नाव के जरिए आगे बढ़े। वह तीन दिन के बाद कानपुर के भैरवघाट पहुंचे। जहां से फिर नाव बदली और बिठूर के घाट पहुंचे। सुबह वह नाना साहब के गोपनीय ठिकाने पर पहुंचे और अपनी बहन लक्ष्मीबाई से राखी बंधवाई। बताते हैं कि रानी ने भी अपने भाई के इन्तजार में अन्न-जल ग्रहण नहीं किया था।

आशा खबर /रेशमा सिंह पटेल

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