संवेदनाओं से भरा है प्रेमचंद का साहित्य
क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात नहीं करोगे, ये कहने की हिम्मत और साहस प्रेमचंद में थी। प्रेमचंद उस युग में पैदा हुए जिस समय हमारा देश अंग्रेजी साम्राज्यवाद का गुलाम था। दूसरी तरफ सैकड़ों वर्षों से चली आ रही सामंती मकड़जाल में हम फंसे थे। प्रेमचंद दोनों ही स्तरों पर अपनी लेखनी को हथियार बनाकर लड़ रहे थे। उक्त बातें मुंशी प्रेमचंद जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता डॉ. मंजीत सिंह ने कहीं। उन्होंने कहा प्रेमचंद का पूरा साहित्य सम्वेदनाओं से भरा है।
मुरली मनोहर टाउन इंटर कॉलेज के सभागार में रविवार को मुंशी प्रेमचंद जयंती उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी लखनऊ और संकल्प साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था की ओर से नाट्य कार्यशाला में मनाई गई। पंकज सिंह ने कहा कि प्रेमचंद ग्रामीण जीवन के रचनाकार थे। उनकी कहानियों में गांव के लोगों की सहजता और सरलता देखने को मिलती है। अध्यक्षता करते हुए कालेज के प्रधानाचार्य डा. अखिलेश सिन्हा ने कहा कि प्रेमचंद कालजयी रचनाकार थे। उनकी रचनाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उनके समय में थी। बल्कि आज उनकी प्रासंगिकता पहले से बढ़ गई है। संचालन कर रहे रंगकर्मी आशीष त्रिवेदी ने कहा कि प्रेमचंद इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि उन्होंने किसानों , मजदूरों, दलितों और स्त्रियों के लिए लिखा बल्कि इसलिए महत्वपूर्ण है कि उन्होंने किसानों, दलितों, मजदूरों और स्त्रियों के पक्ष में खड़ा होकर लिखा। इस अवसर पर रंगकर्मी आनन्द कुमार चौहान, विशाल, जन्मेजय, उमंग रामकुमार, अरविंद, ज्योति, कृष्ण कुमार यादव इत्यादि उपस्थित रहे ।
आशा खबर / शिखा यादव